सड़कें घेरने से हुआ ये बड़ा नुकसान, अब व्यापारी कर रहे सरकार से मांग
कोरोना महामारी से मिले झटके के बाद किसान आंदोलन से उपजे हालातों के बाद अब व्याहपारी किसानों की मांगें सुने जाने के लिए केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
किसानों के आंदोलन से व्यापार को काफी घाटा हुआ है. यहां तक कि दिल्ली के सभी थोक बाजारों के अलावा दिल्ली से 600 किलोमीटर तक फैले बाजारों में खरीद फरोख्त रुक गई है.
- News18Hindi
- Last Updated:
December 19, 2020, 4:16 PM IST
दिल्ली हिन्दुस्तानी मर्केंडाइल एसोसिएशन के पूर्व प्रधान सुरेश बिंदल का कहना है कि किसानों के आंदोलन से व्यापार को काफी घाटा हुआ है. यहां तक कि दिल्ली के सभी थोक बाजारों चांदनी चौक, सदर बाजार, खारी बावली, नया बाजार, भागीरथ पैलेस, दरियागंज, टैंक रोड, सरोजनि नगर, गांधीनगर, के अलावा दिल्ली से 600 किलोमीटर तक फैले बाजारों में खरीद फरोख्त रुक गई है.एक पखवाड़े से चल रहे किसानों के आंदोलन से बाजार के टर्नओवर पर बड़ा असर पड़ा है. इन दिनों में करीब 30 हजार करोड़ रुपये की खरीद-फरोख्त रुक गई है.
बिंदल कहते हैं कि कोरोना के कारण पहले ही बाजार काफी मुसीबतें झेल चुका है. अब जैसे तैसे हालात ठीक हो रहे थे तो किसान आंदोलन ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी है. ट्रांस्पोर्टर्स में इस आंदोलन से एक अलग किस्म का डर है. 12 दिसंबर से लेकर 14 दिसंबर तक तेज हुए आंदोलन के कारण व्यापार सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.
वहीं एसोचैम और कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का भी अनुमान है किसान आंदोलन से व्यपार को बड़ा घाटा हुआ है. भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम (ASSOCHAM) की ओर से कहा गया है कि, ‘किसानों के मुद्दों का शीघ्र समाधान होना चाहिए. किसानों के विरोध के कारण रोजाना 3500 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है. ऐसे में करीब 20 दिनों से चल रहे इस आंदोलन से एक बड़े घाटे का अनुमान है. किसान आंदोलन से सिर्फ दिल्ली एनसीआर के व्यापारियों को ही नहीं बल्कि देशभर के व्यापारियों को परेशानी हो रही है. इससे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुई हैं. वहीं कैट के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि दिल्ली और दिल्ली के आस-पास चल रहे किसान आंदोलन की वजह से लगभग 5000 करोड़ रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ है. खंडेलवाल कहते हैं कि किसानों की मांगों को सुना जाए और इस समस्या का तुरंत हल निकाला जाना चाहिए. अगर ऐसा जल्दी नहीं किया गया तो व्यापारियों और ट्रांस्पोर्टरों की हालत बहुत खराब हो सकती है. किसानों की घाटे की खेती को लाभ की खेती में बदला जाना चाहिए. दिवाली के बाद जैसे तैसे पटरी पर आना शुरू हुआ था कि अब किसान आंदोलन से बड़ी मुसीबतें आ गई हैं.